एक-दो रोज़ में हर आखँ ऊब जाती है ,
मुझ को मज़िल नहीं रस्ता समझनें लगतें हैं,
जिन को हासिल नहीं वो जान देते रहतें हैं ,
जिन को मिल जाऊं वो सस्ता समझनें लगतें हैं ..
मुझ को मज़िल नहीं रस्ता समझनें लगतें हैं,
जिन को हासिल नहीं वो जान देते रहतें हैं ,
जिन को मिल जाऊं वो सस्ता समझनें लगतें हैं ..
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