शाम को मम्मी का फ़ोन आया कि आज फादर्स डे है और तुमने पापा को विश भी नही किया|भूल गये या बहुत बिजी हो गये?कुछ देर तो समझ ही नहीं आया कि क्या बोला जाये|ऐसा नही कि मुझे पता नही था,सुबह से दो चार पोस्ट भी चिपका चुका था,इधर उधर से चुरा के|पर ये नही समझ पाया कि पापा को कैसे ‘हैप्पी फादर्स डे’ बोला जाये|
संभ्रांत लोगों की तरह चाहिए था,कि पापा को सुबह उठ के विश किया जाए,अगर घर से दूर है, तो कूरियर से फूलों का एक गुलदस्ता भेजा जाये,और अब तो बाज़ार भी हमारे साथ है,किसी भी ऑनलाइन शॉपिंग साईट से कोई बढ़िया सा ‘फादर्स डे स्पेशल’ गिफ्ट भेजा जाये|उनको दस-पंद्रह इमोशनल लाइन्स बोली जाएँ,और उनके साथ की अपनी कोई फोटो तुरंत फेसबुक और ट्विटर पे पोस्ट की जाए|
पर हमदेसी लोगों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये भी है,कि कभी प्यार जताना ही नही आता|हम उन गंवारों और uncivilized टाइप लोगों में से हैं जिन्होंने आजतक कभी लव यू माँ,लव यू डैडी ,सॉरी,थैंक यू, नही बोला, |पता नहीं,क्योंकि शायद कभी जरुरत ही नही पड़ी|हमारी जरुरत और शौक की जो भी चीजें थी,कॉमिक्स,साइकिल,टॉफी,कम्पट,lollypop हमें थोड़ा सा कुनमुनाने और मुँह बनाने से ही मिल जाती थी और शरारत करने पर उनकी 100 km/hr की स्पीड से फेंकी हुई चप्पल ही उनका प्यार दिखाने का तरीका था|
आज भी फ़ोन पे बातचीत पे कभी hi डैड,हेल्लो डैडी नहीं होता,बस हमारा ‘नमस्ते पापा’ और उनका ‘जीते रहो’ होता है|फिर कुछ देर में खाना खाया,क्या खाया के बाद अच्छे से रहो,बढ़िया से आगे बढ़ो,खूब ख़ुशी रहो पे खत्म हो जाता है|कभी कोई बात ही नहीं होती,2 मिनट से ज्यादा|पिता माँ नही हो सकते,जता नही सकते,पर घर आने की डेट बताने पे दो महीने पहले से ही दिन गिनना शुरू कर देते हैं|और जानते हुए भी अनेकों बार पूछते रहते हैं,”आज 21 हो गयी है,बस १६ दिन और हैं,कित्ते बजे ट्रेन है,हाँ हाँ पहुँच जायेंगे स्टेशन,”बस इतना कह के ही फ़ोन मम्मी को पकड़ा के बाहर निकल जाते हैं|
इस बाजारवाद के आने से पहले ये मदर डे,फादर डे नही हुआ करता था,तब जिंदगी कितनी सिंपल थी|शायद वो हमारे साथ चलने के लिए ये नए-नए ‘डेज’ सेलिब्रेट करना चाहते हैं और हम उस छोटे बच्चे से हो जाना चाहते हैं जहाँ ‘लव’ शब्द बोलते हुए शर्म और झिझक होती है, और सोचते हैं कि काश घर पर होते तो बताने से ज्यादा जताना शायद ज्यादा आसान होता|
संभ्रांत लोगों की तरह चाहिए था,कि पापा को सुबह उठ के विश किया जाए,अगर घर से दूर है, तो कूरियर से फूलों का एक गुलदस्ता भेजा जाये,और अब तो बाज़ार भी हमारे साथ है,किसी भी ऑनलाइन शॉपिंग साईट से कोई बढ़िया सा ‘फादर्स डे स्पेशल’ गिफ्ट भेजा जाये|उनको दस-पंद्रह इमोशनल लाइन्स बोली जाएँ,और उनके साथ की अपनी कोई फोटो तुरंत फेसबुक और ट्विटर पे पोस्ट की जाए|
पर हमदेसी लोगों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये भी है,कि कभी प्यार जताना ही नही आता|हम उन गंवारों और uncivilized टाइप लोगों में से हैं जिन्होंने आजतक कभी लव यू माँ,लव यू डैडी ,सॉरी,थैंक यू, नही बोला, |पता नहीं,क्योंकि शायद कभी जरुरत ही नही पड़ी|हमारी जरुरत और शौक की जो भी चीजें थी,कॉमिक्स,साइकिल,टॉफी,कम्पट,lollypop हमें थोड़ा सा कुनमुनाने और मुँह बनाने से ही मिल जाती थी और शरारत करने पर उनकी 100 km/hr की स्पीड से फेंकी हुई चप्पल ही उनका प्यार दिखाने का तरीका था|
आज भी फ़ोन पे बातचीत पे कभी hi डैड,हेल्लो डैडी नहीं होता,बस हमारा ‘नमस्ते पापा’ और उनका ‘जीते रहो’ होता है|फिर कुछ देर में खाना खाया,क्या खाया के बाद अच्छे से रहो,बढ़िया से आगे बढ़ो,खूब ख़ुशी रहो पे खत्म हो जाता है|कभी कोई बात ही नहीं होती,2 मिनट से ज्यादा|पिता माँ नही हो सकते,जता नही सकते,पर घर आने की डेट बताने पे दो महीने पहले से ही दिन गिनना शुरू कर देते हैं|और जानते हुए भी अनेकों बार पूछते रहते हैं,”आज 21 हो गयी है,बस १६ दिन और हैं,कित्ते बजे ट्रेन है,हाँ हाँ पहुँच जायेंगे स्टेशन,”बस इतना कह के ही फ़ोन मम्मी को पकड़ा के बाहर निकल जाते हैं|
इस बाजारवाद के आने से पहले ये मदर डे,फादर डे नही हुआ करता था,तब जिंदगी कितनी सिंपल थी|शायद वो हमारे साथ चलने के लिए ये नए-नए ‘डेज’ सेलिब्रेट करना चाहते हैं और हम उस छोटे बच्चे से हो जाना चाहते हैं जहाँ ‘लव’ शब्द बोलते हुए शर्म और झिझक होती है, और सोचते हैं कि काश घर पर होते तो बताने से ज्यादा जताना शायद ज्यादा आसान होता|